सर्व सिद्धि प्रद: कुंभ: प्रयागराज
सर्व सिद्धि प्रद: कुंभ: प्रयागराज
राकश च चौरिसया आचाय एव िवभागा य , भषजगण िव ान
प्रयागराज, भारत वर्ष का विशिष्ट धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्र, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने पर प्रथम यज्ञ किया था। इस प्रथम के पर ‘प्र’ एवं ‘याग’ अर्थात ‘यज्ञ’ से मिलकर इस अलौकिक भूमि का नाम प्रयाग पड़ा। भारत तीर्थों का देश है, पर उसमें सर्वोपर कौन?… इस जिज्ञासा के समाधान हेतु भारत के समस्त तीर्थों को एक पलड़े पर तथा प्रयागराज को दूसरे पलड़े पर रखा गया पर प्रयाग का पलड़ा भारी पड़ गया, तदुपरांत सप्तपूरियों अयोध्या, मथुरा, काशी, हरिद्वार, कांची, उज्जैन, एवं द्वारिका को एक पलड़े में तथा प्रयाग को दूसरे पलड़े में रखने पर भी प्रयाग वाला पलड़ा भारी रहा, इस तरह प्रयाग की प्रधानता सर्वोच्च हुई तब त्रिदेवों ने धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के प्रदाता को समस्त तीर्थो में श्रेष्ठ तीर्थराज की उपाधि से सुशोभित किया।
ग्रहाणां च यथा सूर्यो, नक्षतृणां यथा शशि।
तीर्थाना मुत्तमं तीर्थ, प्रयागा ख्यमनुत्तमम ।।
जिस प्रकार ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चंद्रमा श्रेष्ठ है इस तरह समस्त तीर्थों में प्रयागराज सर्वोत्तम है यह। विश्व की एकमात्र पवित्र स्थल है जहां पुण्य सलिला पतित पावनी माँ गंगा, यमुना एवं सरस्वती का त्रिवेणी का संगम होता है अतः यह संगम नगरी से भी विश्व विख्यात है।
प्रयागराज भारतीय संस्कृति के महापर्व “कुंभ” आयोजन का प्रमुख केंद्र है जिसका संदर्भ देवों एवं दानवों के मध्य समुद्र मंथन उपरांत उत्पन्न अमृत कलश से है जिस से अमृत प्राप्त करने हेतु दोनोंपक्षों में 12 दिनों तक भयंकर संघर्ष हुआ जिसमें अमृत कुंभ को सुरक्षित रखने में बृहस्पति सूर्य एवं चंद्रमा ने
सहायता किया फिर भी संग्राम की उथल-पुथल एवं भाग दौड़ में कुंभ कलश से अमृत की चार बूंदे त्रिवेणी संगम प्रयागराज में, गंगा तट हरिद्वार में, शिप्रा तट उज्जैन में एवं गोदावरी तट नासिक में छलक गई। देवों का एक दिन धरती के एक वर्ष के बराबर होता है और 12 दिन युद्ध होने के कारण उक्त चार स्थलों पर प्रत्येक 12 वर्षों में अमृत प्राप्ति की कामना हेतु महापर्व कुंभ मनाया जाने लगा। तीर्थराज के कुंभ में स्थान मात्र से सौ अश्वमेध यज्ञ, हजारों तीर्थ यात्रा एवं करोड़ गायों के दान का पुण्य प्राप्त होता है।
कुंभ विश्व का सबसे वृहद धार्मिक आयोजन है, जिससे देश- विदेश के लोग आकृष्ट होकर पुण्य एवं मोक्ष की कामना से बिना किसी आमंत्रण के खींचे चले आते हैं। कुंभ में संपूर्ण भारत की विविधता संजोए लघु रूप के दर्शन होते हैं इससे विशाल एवं भव्य सभागम की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती तभी तो यूनेस्को ने महाकुंभ को मानवता की अभुर्त सांस्कृतिक विरासत को विश्व धरोहर रूप में मान्यता प्रदान किया है यह विश्व स्तरीय महापर्व वैश्विक पटल पर धार्मिक, पौराणिक, ज्योतिष एवं आध्यात्मिक तत्व निहित होने से राष्ट्र को शांति, सामंजस्य एवं सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधने का प्रतीक भी है। वर्ष 2025 में प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर महाकुंभ का वृहद आयोजन होगा।